पूर्णागिरि मन्दिर |
पूर्णागिरि मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड प्रान्त के चम्पावत जनपद टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर काली नदी के दांये किनारे पर स्थित है।
यह सिद्ध पीठों में १०८ में से एक है। यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था। प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहाँ आते हैं।
चैत्र मास की नवरात्रियों से दो माह तक यहॉ पर मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें श्रद्धालुओं के लिए सभी प्रकार की सुविधायें उपलब्ध कराई जाती हैं
यहाँ आने के लिये आप सड्क या रेल के द्वारा पहुच सकते है। यहाँ निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर से पहुच सकते है। जो यहाँ से २० कि॰ मी॰ है। सड़क से यहाँ आने के लिये मोटर मार्ग ठूलीगाड तक है जोकि टनकपुर से १४ कि॰ मी॰ है,तत्पश्चात ३ कि॰मी॰ का रास्ता पैदल ही पूरा करना होता है।
मान्यता के अनुसार जब भगवान शिवजी तांडव करते हुए यज्ञ कुंड से सती के शरीर को लेकर आकाश गंगा मार्ग से जा रहे थे | तब भगवान विष्णु ने तांडव नृत्य को देखकर सती के शरीर के अंग के टुकड़े कर दिए जो आकाश मार्ग से पृथ्वी के विभिन्न स्थानों में जा गिरी |
पौराणिक कथा के अनुसार जहा जहा देवी के अंग गिरे वही स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गए | माता सती का “नाभि” अंग चम्पावत जिले के “पूर्णा” पर्वत पर गिरने से माँ पूर्णागिरी मंदिर की स्थापना हुई |
पूर्णागिरी मंदिर के सिद्ध बाबा के बारे में यह कथा है कि एक साधू ने व्यर्थ रूप से माँ पूर्णागिरी के उच्च शिखर पर पहुचने की कोशिश करी | तो माँ ने क्रोध में साधू को नदी के पार फेक दिया | मगर माँ ने इस संत को सिद्ध बाबा के नाम से विख्यात कर उसे आशीर्वाद दिया | जो व्यक्ति मेरे दर्शन करेगा , वो उसके बाद तुम्हारे दर्शन भी करने आएगा | जिससे कि उसकी मनोकामना पूरी होगा
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